भागवत 2022

जय श्री राम
धूनी और धुनें का अंतर

धूना शिव का पुरुष स्वरुप है। धूनी प्रकृति स्वरुप है / सेवा भाव दोनों के ही एक समान होती है। धूनी मैं सब चीज का भोग लगता है। सिर्फ नमकीन का भोग नहीं लगता। नमकीन तो दोनों मैं ही भोग नहीं लगता। अग्नि को नमक नहीं चढ़ाया जाता। धूनी मैं सफाई के सांथ लेपाई पुताई होती है। वहीं शिव जी के वहां (धुनें) मैं झाड फूक के बाद ही कार्य शुरू हो जाता है। धुनें मैं अस्त्र शस्त्र नहीं होते हैं, उनकी आरती सन्यास की होती है। धूनी शब्दा है, धुना नहीं। «धूनी फावडे की अधिक महिमा सिल सिलाओ दर्शन दो दत्ता देव दिगंबरम»

उत्तर दिशा मैं गुरूजी प्रकट हुए। कोई भी कार्य बिना अग्नि के सम्पन नहीं होता। कोई भी कार्य चाहे वो विवाह, नामकरण आदि कोई भी संस्कार सम्पन होने के लिए अग्नि की जरुरत होती है। पूरब दिशा मैं है वेद का स्थान अगर कोई वेद पाठ करने वाला नहीं हो तब वहां के पूजा सम्पन नहीं होती है। दखिन दिशा मैं दंड कमंडल/ जब तक दंड कमंडल की पूजा नहीं करेंगे कोई कार्य पूरा नहीं होता। पश्चिम दिशा मैं गोला ठुमरा, ठुमरा सिंधु नदी के रेत से मिलता है कोई लाल तो कोई सफ़ेद रंग का होता है इसे पहना भी जाता है।

पूर्ण आहूती मैं ेएक श्रीखंड लकड़ी का बनता है उसमे शंख, चक्र, गदा, पदम सब बने रहते है उसे पूजा मैं रखते हैं।

सृस्टि करता प्रकृति है। धूनी का सार प्रकृति है। शिवजी का ध्यान धुनें मैं लग जाता है तब उनको आसान से कोई मतलब नहीं रहता, वभूति का सस्नान करते हैं जल की कोई जरुरत नहीं रहती। जिस प्रकार नागा बाबा वभूति लगाते और अपना धुना कहते हैं धूनी नहीं। {прим. : здесь есть пропущенные элементы, текст не очень связный. Надо попросить чтобы весь фрагмент записали полностью, чтобы добиться точного смысла. Интересные слова про значение Вибхути – священного пепла)

दया और विजया मा पार्वती के दो सखिया हैं। भाँग को विजया कहा गया हैं। शिवजी को विजया का भोग लगता हैं ना की चिलम। इंसान नशे के लिए भाँग का प्रयोग करते हैं। परन्तु हर कोई इसे हज़म नहीं कर पता हैं। ये बुद्धि का विकास नहीं करती हैं, वो वियक्ति आगे प्रगति नहीं कर सकता हैं। हर प्रकार का नशा चाहे वो शराब हो, भाँग या क्रोध और अहंकार हो वो विवाके शक्ति को समाप्त कर देता हैं। नशा नाश की जड़ हैं। {Прим.: Пропущен большой фрагмент, о том как некоторые гости курили траву и безобразно вели себя в Ашраме}

भाँग का सेवन वो करते हैं जिन्हे कोई मोह कोई जिम्मेदारी नहीं होती। भाँग का नशा ध्यान के लिए होता हैं। ध्यान के द्वारा वो सिद्ध हो जाता हैं। जो नशे के लिए पीते हैं उनकी विचार शक्ति ख़तम हो जाती हैं। ये तपस्वीयों के लिए होता हैं, घर ग्राहसती वालो के लिए बिलकुल भी नहीं होता। वो कोई भी जिम्मेदारी पूरी नहीं कर सकते। नशा करने वाला सेवा नहीं कर सकता, जिसे सेवा का नशा होगा वो ही सेवा कर सकता हैं। नशे मैं जीवन बिताना वो मनुष्य का काम नहीं हैं। दूसरे की नक़ल करने से पुरुषार्थ नहीं मिलता। लक्ष्मण और हनुमान जी वे सेवक माने गए हैं। हनुमान जी से बड़ा कोई सेवक नहीं हुआ। सेवा मैं हर जीव जंतु का ख्याल करना पड़ता हैं। लकड़ी का भी मुँह देखना पड़ता हैं किश हिस्से से जलाई जाये उसका भी ख्याल रखना पड़ता हैं।{прим. : здесь есть пропущенный кусок про то как различные предметы имеют лица. Интересно бы поподробней узнать)

धूनी की विद्या सीखना बहुत कठिन होता हैं। 12 साल साधु सांथ रहे तब मिले ेएक वाणी। 12 साल साधु की सेवा करने से धूनी के नियम बतलाये जाते हैं।
मानुस और मनुष्य दो होते हैं। उन दोनों मैं से ेएक मानव हैं। जिसके अंदर मानवता है।
आश्रम और ग्रहस्ती का ेएक ही विचार होता है किन्तु стоआश्रम का धर्म अलग है और ग्रहसती का धर्म अलग है। सन्यासी अपना और आश्रम के धर्म का पालन करता है। ग्रहस्त ग्रहस्ती का धर्म भी करेगा और आश्रम का भी सांथ ही सांथ निभाएगा।

विष्णु साहस्तरानाम मैं कहा है —
आश्रमोः, आश्रमे, आश्रमः
सबके लिए आश्रम का धर्म ेएक ही है। आश्रय में कोई भी आता हो चाहे वो पक्षी, जानवर, कीड़े आदि वो आश्रम के आश्रय मैं आये हैं उन सबका भी ध्यान रखना पड़ता है। आश्रम मैं हिंसा बिलकुल नहीं होनी चाहिए ना ही घिणा, द्वेष की हीन भावना होनी चाहिए। भीमताल आश्रम मैं शिव पुराण के दौरान भंडारे के दिन ेएक कोड़ी बाहर गेट पर बैठा था उससे पत्तल मैं भोजन दे दिया उसने आग्रह किया पहले बाबाजी के दर्शन करूंगा फिर ही भोजन पाउँगा कुछ लोगो ने उससे अंदर आने से मना कर दिया शोर देख हमने उससे बुलवा कर अपने सामने भोजन करवाया उससे बाद वो कहाँ गया किसी ने नहीं देखा जबकि जाने का ेएक ही रास्ता है। इस लिए कौन किस रूप मैं आता है पता नहीं। आश्रम मैं सबके अंदर नारायण का वास देखना पड़ता है। सबके प्रति सेवा भाव रखो चाहे वो कैसा भी हो कुछ नहीं तो अच्छे दो बोल ही बोल दो।

देवताओं पर चढ़े हुए पुष्प पर पैर पड़ जाये तो उसकी शक्ति छीर्न हो जाती है।जले हुए को मुर्दा माना जाता है।उसमे अग्नि का संस्कार होता है। जली हुई माचिस, बत्तीयां इन सबको ेएक जगह इकठा कर जला देना चाहिए पैर पड़ने पर उसकी शक्ति छीर्न होती है।
{прим. Здесь пропущен небольшой кусок , без него не очень понятен контекст}

ेएक गंधर्व के रास्ते मैं शिवजी पर चढ़े हुए पुष्प डाल दिए और उस गन्धर्व का पैर उन फूलों पर पड़ गया उसकी शक्ति वहीं छीर्न हो गयी उसने तब वहीँ बैठ महिमा श्रोत गाया। जहा सफाई है शुद्धता है वहीँ देवता विचरते हैं और विचार भी अच्छे होते हैं। सुंदरकांड मैं भी ये ही सिखाया है। जूते, चप्पल सब आपकी शेवा करते हैं उनका हमें भी आदर करना चाहिए इधर उधर नहीं रखना चाहिए उन्हें जगह पर सही से रखना चाहिए। इसे कोई देखे या ना देखे स्वयं को तो दीखता है। रात को झूठे बर्तन रखना दर्रीदराता को बुलावा है। ये सब आश्रम का काम है चाहे ग्राहस्त आश्रम हो या आश्रम हो।
{прим. Пропущен кусок о том, как некоторые гости и преданные в ашраме не аккуратно себя ведут}

रोज़ साफ सफी सूर्य उदय से पहले होनी चाहिए। वहां से सूरज के किरणे कितना कुछ ले कर आ रही है और वहां से हम जाडू मैं सब बाहर कर देते हैं। फिर रोते हैं की कुछ कमाई तो बचती नहीं कहाँ से रहेगी सब झाड़ू मैं निकल जो दिया। सूर्य उदय से पहले स्नान कर जो किरणे सरीर पर पडती है वो निरोग बनाती है। कलश मैं पानी भर कर सूर्य की किरण पड़ने से वो जल गंगाजल बन जाता है। ये धर्म है आश्रम का। सूर्य उदय होने से दो घंटे पहले उठना चाहिए /
ये सब देखने वाला हमारे अंदर ही है। ेएक बार ेएक महात्मा ने अपने दो शिस्यों को ेएक ेएक सेव दे कर बोला इससे वहां जा कर काटना जहाँ कोई इसे देखे ना। दोनों साल भर तक घूमते रहे पर कोई स्थान ना मिला फिर ेएक शिष्य को ेएक गहरी काली गुफा मिल गयी वो अंदर गाया और सेव को काट लाया फिर दूसरा शिष्य भी उसी गुफा मैं पंहुचा जैसे ही सेव काटने लगा तब उसका विवेके जागा मैं तो देख रहा हूँ सेव तो तब काटना था जब कोई ना देखे वो समझ गाया इस बात को कोई देखे ना देखे हम स्वयं तो देखते ही हैं। हम जो भी कर्म कर रहे हैं उससे स्वयं तो देख रहे हैं कोई देखे ना देखे सच बोल रहे हैं ज़ूठ बोल रहे हैं सब हम देख रहे हैं। इसी को आधियात्म कहते हैं।

जिसको तुम पूज़ते हो वो भी तुम्हे देखते हैं और परीक्षा भी लेते हैं। जैसे सत्यव्रत की परीक्षा लेने के लिए भगवान आये उस्से कहा था मैं कभी झूठ नहीं बोलूंगा वोेएक पेड़ के नीचे बैठा हुआ था उसके सामने से ेएक सुन्दर सा मृग भाग कर गाया और पीछे से भगवान हाथ मैं तीर कमान लिए सत्यव्रत के पास आ कर पूछते हैं क्या तुमने कोई मृग यहाँ से जाता हुआ देखा उसने शालीनता से जवाब दिया जो देखता है वो बोलता नहीं और जो बोलता है वो देखता नहीं तब से उसका नाम सत्यव्रत पड़ा क्यों की उसने अपना सत्य का व्रत डिगने नहीं दिया।

सब भावना होती है। कई बार प्रमाण भी होता है उसे समझना पड़ता है जैसे कहीं जाते समय जूता पलट जाये या लाठी गिर जाये तो कुछ समय के लिए रुकना चाहिए। मुहूर्त टल जाता है। समय को मुहूर्त कहा गाया है। समय को ही काल कहा गाया है। मुहूर्त ेएक ेएक पल का होता है
{Прим.: Небольшой пропуск, нет связного перехода.}

जैसे ेएक राजा की रानी बच्चे को जन्म देने वाली थी पंडित को परदे के आगे बैठा दिया गाया जहाँ रानी बच्चे को जन्म देने वाली थी और पंडित ने कहा जैसे ही बच्चा पैदा हो ये नीबू परदे से बाहर कर देना मैं उस मुहूर्त से जन्मकुंडली बना दूंगा। निम्बू के बाहर आते ही पंडित ने राजा को बताया ये नवज़ात तो तुम्हारा महान शत्रु बनेगा जिसके कारण राजा ने उस बच्चे और रानी दोनों को देश निकला दे दिया जब वो बच्चा 25 वर्षो का हो गाया तो बड़ा प्रकांड ज्योतिष बना तब वो अपने पिता के राज्य में गाया/ जहाँ वज्र गिरने वाला थी और सभी बड़े ज्योतिष बुलवाये गए थे। उस बच्चे ने बोला वज्र गिरेगा तो पर महल मैं नहीं उस पेड़ पर/ हुआ भी ऐसा ही /तब उसी पंडित ने जिसने जन्म कुंडली निकली थी उसने पुछा ये किस मुहूर्त मैं निकाला गाया। तब उस बच्चे ने बतया जैसे निम्बू परदे के अंदर से बाहर आने तक मुहूर्त बदल गाया उसी प्रकार वज्र का आने का और गिरने का मुहूर्त भी अलग है।

वो ही राजा एक बार घूमता हुआ अपने बाग़ मैं गाया उसने देखा वहां काम करती ेएक महिला ने बच्चा पैदा किया और उससे उठा कर घर चली गयी राजा महल वापिस आया और बोला हम अपनी रानी के लिए 6 महीने से दास दासियान लगाते हैं पर बच्चे को जन्म देना तो इनका स्वभाव है इस लिए सब दास दासियान हटा दो, उस रानी ने जब ये देखा तो उसने माली को कहा की बाग़ मैं पानी ना डाले/ कुछ हफ्तों बाद सभी पेड़ सूख गए /जब राजा ने पुछा तब रानी बोली जंगल मैं इतने वृक्ष होते है आपने कितनो केलिए माली लगवाए वो स्वयं होते हैं पर आपके बाग मैं लगे हुए है क्योंक आपने उन्हें पाला है वो उनका स्वभाव है। हर किसी का अपना स्वभाव होता है।
झाड़ू सबसे मुखिय चीज है। झाड़ू को इज़्ज़त देनी चाहिए। वो लक्समी का स्वरुप है। झाड़ा और कोने मैं फेक दिया। जैसे सर झुका कर उठाते हैं झाड़ू वैसे ही सर झुका कर आसन मैं रखना चाहिए तभी बरकत आती है।

जो हम करते हैं वो सब दीखता है हमारे आस पास ही भगवान होते हैं हमारे करमो मैं। जब भोग लगाते हैं तब हाथ धोना चाहिए। चाय, पानी पीने पर गिलास झूठा होता है तो हाथ क्यों नहीं झूठा हुआ जितने बार मुँह मैं हाथ लगता है उतने बार हाथ झूठा होता है और उतने ही बार हाथ भी धोना चाहिए तब बनाया हुआ भोग भी स्वच्छ रहता है। जहाँ स्वछता होती है वहीँ भगवान का वास होता है। जहाँ गन्दगी होती है वहां दर्रीदराता आती है।
सिद्धि कोई मंत्रो से ही नहीं प्राप्त होती करमो से भी सिद्धि पायी जाती है।
कर्म प्रधान विश्व करि राखा, जो जस करई सो तस फल चाखा।

«कर्म प्रधान विश्व कर राखा जो जस करता तस राखा» कर्म को विष्णु ने प्रधान मना है। गीता मैं ३ प्रकार के कर्म बताये हैं १. निश्चित कर्म २.संतु कर्म ३.कर्म होते हैं जो करने लायक नहीं होते। महाराष्ट्र मैं इस लिए भोग बनाने वाले उनको महाराज कहते हैं सफाई से भोग बनाते हैं और उनको तन्खावा मैं रखते हैं। सोमवारी बाबा हर सोमवार को भंडार लगाते थे और अपने सामने बनवाते थे उसके उप्पर सफ़ेद कपड़ा रखवादेते थे उसके बाद उस भोग को देखना नहीं होता था १०० लोगो के बने हुए भोग को १००० लोग भोजन कर जाते थे कभी कमी नहीं पडती थी। ये भाव होते हैं अनपूर्णा का भंडार है वो कम कैसे पड़ेगा।

ये सब शिक्षा उससे दी जाती हैं जो उससे ग्रहण कर के याद रखे। जिसमे श्रद्धा हो विश्वास हो उससे गुर दिया जाता है अन्यथा अपनी वाणी का दुरूपयोग होता है /जो आप करे तो देवता, जो कह कर करे वो मनुष्य, जो कह कर भी ना करे वो असुर जिसने आज्ञा का पालन ही नहीं किया तो वो मनुष्य ही कहाँ रहे। इन सबकी पहचान हो जाती है।
{Здесь перед концом тоже важный пропуск, продолжение сказанного. Хотелось бы полностью увидеть текст}

No Comments

Post a Comment

4 × четыре =